sarso showing report : सरसो के बुवाई आकड़ो में बढ़त से सरसो के उपज में 125 लाख टन अधिक सरसो की उपज का अनुमान लगाया जा रहा हे | मौसम अनुकूल, फसल पर कीटों का अटैक नहीं होने से सरसो की पैदावार में बढ़ोतरी हुई हे | सरसो बुवाई आकड़ो से जुडी एक महत्वपूर्ण जानकारी आज के इस ब्लॉग पोस्ट मे अपडेट की गयी हे |
Sarso Showing Report
खाद्य तेल के मोर्चे पर अच्छे संकेत हैं। सरसों का रकबा बढ़ा है। छह जनवरी तक 95.34 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सरसों की बुवाई हुई है। अनुकूल मौसम व कीटों के अटैक से बची फसल को देखते हुए इस साल रिकॉर्ड 125 टन सरसों की पैदावार हो सकती है। अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने उम्मीद जताई कि खाद्य तेल की आयात निर्भरता थोड़ी कम होगी।
सरसों का रकबा बढ़ा
पिछले साल छह जनवरी तक 88.42 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई थी। फसली सीजन 2021-22 में 101.97 लाख टन लक्ष्य के मुकाबले 117.46 लाख टन सरसों की पैदावार हुई थी। चालू साल में सरसों की खेती का रकबा सात लाख हेक्टेयर बढ़ा है। सरसों उपज बढऩे की उम्मीदें इसी पर आधारित हैं। वैसे भारत में सरसों की खेती का औसत दायरा 63.46 लाख हेक्टेयर है।
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कम होगी खाद्य तेल आयात निर्भरता
ठक्कर ने कहा कि सरसों की तरह अन्य तिलहनों की उपज बढ़ी तो खाद्य तेल के मामले में भारत धीरे-धीरे आत्म निर्भर बन सकता है। घरेलू जरूरतें पूरी करने के लिए फिलहाल 30 से 35 प्रतिशत खाद्य तेल आयात करना पड़ता है। सबसे ज्यादा आयात पाम ऑयल व सन फ्लावर का होता है। मांग-आपूर्ति में फासला बढऩे का बेजा फायदा विदेश में बैठे सटोरिए उठाते हैं। भारत सहित विकासशील देशों में जिन चीजों-उत्पादों की मांग बढ़ती है, उनमें जम कर सट्टेबाजी होती है।
एक लाख करोड़ की बचत
घरेलू जरूरत पूरी करने के लिए भारत लगभग एक लाख करोड़ रुपए का खाद्य तेल आयात करता है। विदेशी किसानों को इसका फायदा होता है। नीतिगत समर्थन से तिलहनों की पैदावार बढ़ाई जा सकती है। जानकारों का कहना है कि इससे दो फायदे होंगे। एक तरफ बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा बचेगी।